Friday 2 December 2016

तिरंगे के आड़ में (कविता )

तिरंगे के आड़ में 

तिरंगे के आगे सर उठाते हो 
और भ्र्ष्टाचार में गिर जाते हो ,

जन - गण का गान भी गाते  हो  
और मिथ्या लबों पे लाते हो ,

वीर - शहीदों पर श्रद्धा - सुमन लुटाते हो 
और दिल में कुस्वार्थ बसाते हो ,

लोकतंत्र में सेवा दिखाते हो 
और जनता से कर चुकवाते हो ,

पर एक तिरंगा और राष्ट्र एक हैं 
एक तन और मन भी एक हैं 
अब राष्ट्र के लिए तो  सच  बोलो 
तिरंगे के आगे सर उठाते हो 
या तिरंगे के आड़ में सर छुपाते हो ॥ 

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